Wednesday, October 28, 2009

मुझे मेरे स्वप्नों से मुक्त करो



बहुत जिया, बहुत भटका
मगर मिला नहीं वो
जिसकी चाह जगाई तुमने।
बहुत खोजा, आस लगाई
चलता ही रहा, पर ख़त्म नहीं हुआ
जो राह थमाई तुमने।


बहुत सोचा , ढूँढता रहा-
चौंकता हुआ, विस्मित
कभी इस दर पे, तो कभी उस गली में
अब देखा नहीं जाता-
थक गए पाँव , बोझिल हुई पलकें
अब इन आँखों को सुसुप्त करो

मुझे मेरे स्वप्नों से मुक्त
करो।



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