Friday, October 30, 2009

याद हो तुम मुझे



अब भी है बिखरी सदा तुम्हारीमेरी इन अधूरी कविताओं मेंजो मैं अपने दिल को फुसलाने
के लिए लिख देता हूँ
यूँ ही
ये सोच के -कि अगर तुम किसी तरह इन्हें पढ़ लो,भूल सेशायद अगली सदी में,तो तुम्हें ये एहसास होकि पिछली सदी मेंजिसे तुमने छोड़ आया था बेफिक्र,वो है अब भी वाकिफ़-हर एक बीते लफ्ज़ से तुम्हारी,जिसके हर पेचीदे फैसले कोथा आसां बनाया बस सदा ने तुम्हारीकि उसने चुनी तो सिर्फ़ वोही मँजिल चुनीजिसकी हर राह मेंबसती सदा थी तुम्हारी
...और फिर तुम जाओएका-एक एक दिनसामने मेरे,लेकर मेरे सारे ख़त-थूक से सटाएरुपैये की स्टैंप वालेलिफाफे के साथ,ये बतानेकि तुम्हें भी था इंतज़ार
उधर मेरे अगले ख़त का।

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