Wednesday, May 22, 2019

इधर भी, उधर भी



हवाई जहाज ने खींच दिया
आसमान में एक लकीर

मादरचोद इधर भी
मादरचोद उधर भी

वो देखो
वो लकीर अब नहीं दिख रहा



इतनी कड़वी दवाईयाँ पी चुका



इतनी कड़वी दवाईयाँ पी चुका
कि अब मीठी गोली बेईमान लगती है

थक गयी सबको खुश करते करते
अब समझा वो क्यूँ परेशान लगती है

बनो खुद में ही कुछ, बनो खुद अपने जैसे
ये मशहूर अदाएँ एक समान लगती हैं



Tuesday, March 19, 2019

सोचता हूँ



अरसे से बस जोतता रहा हल, यहीं देहात में
सोचता हूँ अब शहर जाऊँ, चार पैसे कमा आऊँ

करता रहा भला, जहाँ जितना भी हो सका
सोचता हूँ अब उनका नाम-पता खोज आऊँ

बहुत सहूलियत से थामता रहा इन रिश्तों के डोर
सोचता हूँ अब मँझा बना इनसे पतंग लड़ा आऊँ