सँड़सी से उखाड़ फेंको
इन औरतों कि मूँछें
एक के बाद एक-
चुरा लेती ये अँगूठियाँ शकुंतला की,
मछली के पेट को फाड़ के।
ये ही हैं वो सारी जो
सताती थीं अशोक वाटिका में
सीता को,
कसती थीं तानें
और फिर सोती थीं पड़ोसी के साथ
खटमल लदे खटिया में।
टपकाती लार विभीषण पे,
कुरूप गण ये,
डूबा नाख़ून को अपने मासिक खून में।
हर लेती मासूमियत
नन्हे बालक की
गोदों में खेलाते-खेलाते।
पत्थर की बायीं आँखें इन डायनों की
गाड़ दो मिट्टी में
उन्हीं नन्हे बच्चों के
टूटे दूध के दांतों के साथ।
काले कनस्तर की बनी,
चूल्हे की कालिख लदी, चूहों की चहेती, ये,
एक सलाई की ललकार से थर्रा उठती हैं।
किरासन का वो डब्बा लाओ
नहलाओ इन्हें नंगे
और खड़ा कर दो इस चिलचिलाती धूप में।
जब ये झुलस के राख बन जायें तो
अर्पित कर देना इन्हें
अगली गली के यतीम शिवलिंग पे।
और फिर सोती थीं पड़ोसी के साथ
खटमल लदे खटिया में।
टपकाती लार विभीषण पे,
कुरूप गण ये,
डूबा नाख़ून को अपने मासिक खून में।
हर लेती मासूमियत
नन्हे बालक की
गोदों में खेलाते-खेलाते।
पत्थर की बायीं आँखें इन डायनों की
गाड़ दो मिट्टी में
उन्हीं नन्हे बच्चों के
टूटे दूध के दांतों के साथ।
काले कनस्तर की बनी,
चूल्हे की कालिख लदी, चूहों की चहेती, ये,
एक सलाई की ललकार से थर्रा उठती हैं।
किरासन का वो डब्बा लाओ
नहलाओ इन्हें नंगे
और खड़ा कर दो इस चिलचिलाती धूप में।
जब ये झुलस के राख बन जायें तो
अर्पित कर देना इन्हें
अगली गली के यतीम शिवलिंग पे।
जी, राक्षसी औरतें....
ReplyDeleteक्या सब फंसी पर लटक गयी..
नहीं हैं कुछ यहीं,
पी रही खून,
उनकी रक्त पीने की अभिलाषा
नहीं हुई है कम..
इतने दशक बीतने के बाद भी..
बाप रे ,कितना सच कितना बेलौस कितना यथार्थ ! मान गए उस्ताद !
ReplyDeleteसूपनखा,पूतना जैसी प्रवृत्तियां हर युग में रही हैं उसके लिए किसी अवतारी की ही ज़रुरत होती है !
ReplyDeleteVery Nice And Interesting Post, thank you for sharing
ReplyDeleteFamous Positive Quotes
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