Tuesday, September 28, 2010

मेढक की बेहूदगी पे



मेढक तुमसे बड़ा ढक
शायद की कोई जंतु मैने देखा है

टेंके रहते हो घुटना हरदम
किसी हीन भावना से ग्रस्त
रंगवाये हो अपनी पीठ सबसे
नालायक चित्रकार से
शायद इसलिए ही नहीं हो
किसी भी देवता की सवारी-
पर माँग बहुत है तुम्हारी साँपों के बीच
लगती है बोली पे बोली और
लुटाते हो प्रसाद बनकर
जब हपकने आती तुम्हे साँपों की टोली


यही सब देखकर
चुना है तुम्हें
एन. सी. ई. आर. टी. वालों ने
चीराने के लिए
दसवीं कक्षा के
बायोलॉजी लैब में-

और मज़ा कितना आता है
छात्रों को
तुम्हें प्लास्टिक बैग में
धर दबोच,
उल्टा लेटा,
चाकू चलाने में

अपने
पाठ्यक्रम के अनुसार



1 comment:

  1. Animal rights वालों ने इस कविता को तो नहीं पढ़ा?
    :)
    ग़जब।

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