Sunday, September 26, 2010

कविताओं का वितरण समारोह



बाँट रहा हूँ
अपनी चन्द कवितायें
लूझ लो झट से
हो रही इनकी हरी लूट

काम आ जाएँगी ये तुम्हें
बेबसी की रात में,
जब प्यार की बदहजमी
दें किलकारें
और चिल्लाओ तुम 'बाप-बाप'
जब हो न सके कुछ और सहन
और बन के लंगटा बाबा
निकलना पड़े देशाटन पे

चाट लो या खा लो
पर छिलका ज़रूर फ़ेंक देना
वरना ये बेअसर रहेंगे
ध्यान रहे
लेना इसे तब तक
जब तक अगले दिन प्रातः काल
ये मूत बनके न निकले

रख लो निःशुल्क ये सौगात
समझकर एक हमदर्द की तरफ से




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