Friday, September 24, 2010
एक पुराना कुआँ और उसके लोग
इस घर के पिछवाड़े में
है स्थित एक गोल सा कुआँ
वर्षों से -
इस अँधेरे कुएँ
में जब झाँकता हूँ तो
दिखती हैं मुझे
एक काली मछली,
कुछ सूखे पत्ते,
कभी अच्छी दिखने वाली
पर अब सड़ चुकी पंखुड़ियां-
बगल वाले फूल के पौधे की ,
और एक मौन मेढ़क ।
यहाँ पर परछाईयाँ भी दिखती हैं
कुछ और काली।
मगर हाँ ,
बारिश में ये जल की रानी
श्रींगार कर
करती अपनी राजपाट
का छानबीन ललक के साथ
और बाबा मेढ़क छलाँगते
अपनी ज्ञान सुधा बाँटने टर्रा-टर्रा।
वे पत्ते नाव बनकर कराते सैर बूंदों को
और बूढ़ी पंखुड़ियां बन जाती चंचल बालायें ।
पर ऐसा कभी-कभी ही होता है।
अक्सर घटाएँ आस दिखाकर भी
चूक जाती इस काले कुएँ को।
देती हरियाली
पहले से ही हरे-भरे खेत
और हँसती कलियों को।
और य॓ छोटा सा परिवार बना रहता
मूक और उदास।
पर फिर भी मैने महसूस किया है कि
इसी कुएँ का पानी
बाल्टी से निकाल
डाल लूँ अपने ऊपर
तो छा जाती है ख़ुशमिज़ाजी
झुलसती धूप में भी।
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Very Nice And Interesting Post, thank you for sharing
ReplyDeleteFamous Positive Quotes
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