कैसा है ये कुबड़ा पहाड़
दुबका हुआ चुपचाप ?
और देखो इस सूरज को-
जिसे कान खींच
ले जाया जाता वापस
हर शाम
तारें कर रहे हैं उठक-बैठक
चाँद है बाहर मुर्गा बना
आसमान का छाता है छिदा हुआ
जिससे चू जाती बासी बारिश
बादल हैं बिखरे रुवें
जिस बिस्तर पे अभी शाम को पड़ी छड़ी
ये ओस हैं रात के आँसू
जो रोता कमरे में बंद पड़ा
देखने जो नहीं मिलता
दुनिया की टी वी
भोर को रोज़ पड़ती है डाँट
संवारता नहीं है चादर अपना समय से
दोपहर का है खाना बंद
मोटा गया है सो-सो के
अनूठे बिम्ब प्रतीक
ReplyDeleteलै लो
100/100
word verification हटाय दो भैया (जाने तुम्हरी उमर क्या है?
)
मेरे मन में भी वही शब्द आया...अनूठा...सच में बड़े अद्भुत और आम जिंदगी से जुड़ते हुए बिम्ब हैं...बोलचाल की भाषा में.
ReplyDeletebhut accha likha h aap ne
ReplyDeleteVery Nice And Interesting Post, thank you for sharing
ReplyDeleteFamous Positive Quotes
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