यादों का गुल्लक ये मन,
जिसमे पड़े कब से
ये सिक्के
कुछ मेरे, कुछ औरों के,
आज गिर कर फूट पड़ा
अपनी बोझ से
कैसे पुराने लग रहे देखो ये सिक्के-
जब डला था तब इनमें कितना चमक थापर आज भी इसे हम देखते उसी पुरानी नज़र से
और इसलिए अब भी लगता बिल्कुल पहले सा
क्या होगा इनका मोल ?
...मगर करना है क्या इनके मोल से-
खरीदना नहीं है कुछ और अब
अब तो इस बचत पे ही दिन गुजारने हैं
देखो इसमें ही है बसा
मेरे बचपन का खज़ाना-
एक रोज़ पोछाती साईकिल,
पत्थल मार तोड़ी अमरुद,
फ़्रिज से चुरायी मिठाइयाँ,
टिल्लू भैया से ली कॉमिक्स,
दुर्गा पूजा के मेले में जीती
एक साबुन,
एक बैट -
दो विकेट,
एक कोयले वाली ट्रेन,
न जाने और कितनी अशर्फ़ी...
और उनसे भी अमीर वो कितने सारे पल
Very Nice And Interesting Post, thank you for sharing
ReplyDeleteFamous Positive Quotes
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