कैसा है ये कुबड़ा पहाड़
दुबका हुआ चुपचाप ?
और देखो इस सूरज को-
जिसे कान खींच
ले जाया जाता वापस
हर शाम
तारें कर रहे हैं उठक-बैठक
चाँद है बाहर मुर्गा बना
आसमान का छाता है छिदा हुआ
जिससे चू जाती बासी बारिश
बादल हैं बिखरे रुवें
जिस बिस्तर पे अभी शाम को पड़ी छड़ी
ये ओस हैं रात के आँसू
जो रोता कमरे में बंद पड़ा
देखने जो नहीं मिलता
दुनिया की टी वी
भोर को रोज़ पड़ती है डाँट
संवारता नहीं है चादर अपना समय से
दोपहर का है खाना बंद
मोटा गया है सो-सो के