Thursday, October 29, 2009
कब से खामोश- ये सड़क
न कहा कुछ
न पुछा बहुत
बस चल पड़ा एक दिखायी देती दिशा की तरफ़,
बेजुबान राह पर उस-
जो था शिथिल, सुसुप्त।
तुमने कहा था
ख़ुद रास्ता ही बतलायेगा
मँजिल मेरी।
भले ही क्यूँ न
दिखता हो ये गूँगा,
कर रहा मगर चुपचाप ये चिंतन
एक मौनी बाबा की तरह।
बीत चुकी कितनी सुबहें और कितने पतझड़
कि अब उँगलियाँ थक गई हिसाब लगाते,
मगर देखो अब भी
सोया ही पड़ा है ये रस्ता
बिना खर्राटे के-
न कोई इशारा
न गलती से ही कोई संकेत।
रुक क्यूँ गया ये यका-यक मेरे चलते ही ?
थक गया क्या ये समझ बाँटते-बाँटते , और कर लिया अपना काउन्टर बंद
ठीक मेरे सामने ?
आख़िर हो क्या गया तुम्हारे इस पहुँचे मुनि को?
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Very Nice And Interesting Post, thank you for sharing
ReplyDeleteFamous Positive Quotes
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